तो फिर से देख लिया
कहाँ से आती है ललकार
किस बात पर
कहाँ कैसे छिड़ जाते हैं हिंसा के तार
हम सब हो रहे हैं कहीं न कहीं
अधीरता के शिकार,
पर ऐसा भी क्या
की छीना झपटी में
धरती हो जाए तार- तार
कब तक चलेगा ये
अमानवीय सिलसिला
कहाँ से ये आतंक
हमें विरासत में मिला ,
ऐसा ही होगा क्या फिर इस बार
हम कर देंगे खतरे को दरकिनार
जब तक हम सुरक्षित हैं
नहीं किसी और की मुसीबत से सरोकार,
इस तरह
दिन पर दिन
फ़ैल रहा है आग का घेरा
तो क्या इस तरह मिट कर
मिटाया जाएगा
ये तेरा और मेरा
क्या दिखा सकता है कोई
हमें साँसों का साझा सार
क्या मलहम बनने के साथ
सन्देश भी बन सकता है प्यार
तो कौन करेगा
इस फैलती हुई आग का उपचार
किसके पास है आश्वस्ति और
शांति का अक्षय भण्डार
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
30 सितम्बर 2012
3 comments:
सबका है यह संसार, समुचित उपयोग संसाधनों का..
एक टिप्पणी स्पैम मे ...?
धरती की करुण पुकार ....
प्रभु तुम ही हो पालनहार ॥ ...
मेरे सपूतों को ज्ञान दो....वरदान दो ...
सजा सकें ...संवार सकें मुझे ...
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