बात तब तक
बंद ही थी
जब तक
देख न लिया
तुम्हारी आँखों में
और
सारे गोपनीय सूत्र
उजागर होने के बाद
सन्दर्भों के गलियारे से
चुपचाप
तुम्हारी दृष्टि के ताप में
निकल कर
बन गयी
थी
एक भाव आकृति
बात
तब तक बंद ही थी
और
अब
जब
खुल गयी है बात
न जाने क्यों
बंद बंद सा हो गया हूँ मैं
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका १९ मार्च २०१२
1 comment:
द्वन्द्वों के परिक्षेत्र..
Post a Comment