तुम्हारे साथ
फिर से
इस तरह
सुन्दर क्षणों का
सहज स्पर्श
संभव कर दिया है जिसने
साथ उसका
नित्य निरंतर
जाग्रत रहे
बोध में भी
इसीलिए उतरती है
कविता
२
कविता
प्रार्थना है
जीवन की
जीवन से
जुड़ाव के अंतिम पड़ाव तक
लिए चलती है
मेरे सूक्ष्म स्वरुप को
सहेज कर
इस गोपनीय उड़ान के
कुछ पदचिन्ह
सजाते हुए शब्दों में
पुनर्जीवित होता है
मेरा प्रार्थनामय मन
अशोक व्यास
१६ मार्च २०१२
2 comments:
सुन्दर प्रस्तुति.
प्रार्थनामय मन भावमय कर रहा है.
मन कितना शान्त हो जाता है।
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