उसे सौंप दूं
चेतना का यह वस्त्र
सजगता से
सोच कर ऐसा
करके देख भी लिया प्रयोग
जब जब
अपने संकल्पों से अपना हाथ हटाया
जग को
पहले से बेहतर पाया
उसने कर दिया
सब सुन्दर
जो कभी नज़र नहीं आया
पर
अपने पर अपने अधिकार जताने
जब जब
मैं इठलाया
न जाने क्यूं
सौन्दर्य पर जैसे कोइ
पर्दा सा आया
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२४ जन 2012
2 comments:
अपने से मिलने के लिये न जाने कितनी बाधायें पार करनी पड़ती हैं..
जब जब
अपने संकल्पों से अपना हाथ हटाया
जग को
पहले से बेहतर पाया
उसने कर दिया
सब सुन्दर
जो कभी नज़र नहीं आया
सब सुन्दर था,सब सुन्दर है
सब सुन्दर होगा.
क्यूंकि आपका असल स्वरुप सुन्दर ही
तो है.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,अबकी बार
साक्षात आईयेगा.आपके सुन्दर स्वरुप से
मेरा ब्लॉग सुंदरता के दर्शन कर सकेगा.
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