हथेलियों के बीच
सहेज कर रखना
लौ दिए की
जीवन जैसी
जगमग करती
पथ को उजियारे का स्नान करवाती
झूमती है
आस्था की लय पर
सुनाती है
सदियों पुराना
शाश्वत गान
शक्ति संचरित होती है
हर संकट सह जाने की
इस लौ से
जो
सुरक्षित है
सतर्क हथेलियों के बीच
असावधान होने पर
बुझ भी सकती है
अब सोचने वाली बात ये है
की
तुम्हारी सुरक्षा
इस पथ प्रदर्शित लौ से है
या फिर
तुम्हारे अपनी सतर्कता से
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
७ जनवरी २०१२
3 comments:
इस पथ प्रदर्शित लौ से है
या फिर
तुम्हारे अपनी सतर्कता से
गहन भाव ...
पथ प्रदर्शित करती रचना ...
हमारा हममें कुछ नहीं ..जो भी है केवल उसका है.. सुन्दर रचना ..
संस्कृति को ऐसे ही सजाये आगे ले जाना है।
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