Monday, November 21, 2011

प्रकट होने से पहले

 
नहीं!
इस तरह बुलाने पर नहीं आता वह
बुला कर यह जताने का भाव
की मेरे बुलाने से आता है वह
दिख जाता है उसे
प्रकट होने से पहले
और 
वह अहंकार की ओट में छुप कर
निकल जाता है
हमारे आस-पास से
बिना अपने को प्रकट किये
 
इस तरह बुला कर
उसके आ जाने पर भी
न हम उसे पहचान पाते हैं
न उससे जुड़ पाते हैं
 
बुलाना तो ऐसे
की जैसे
पुकार के साथ
हमारा 'स्व' पिघल कर बहे
और
इस तरह 'एक मेक' हो जाए उससे
की 
बुलाने और आने में
भेद ही ना रहे कोइ
 
बुलाना दरअसल
बुलाना नहीं 
वह ही हो जाना है
ये जीवन
        जिसके बुलाने का बहाना है      
 
 
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२१ नवम्बर २०११          

2 comments:

vandana gupta said...

वाह अशोक जी यही तो प्रेम की सर्वोच्च अवस्था है।

Ashok Vyas said...

dhanywaad Vandanajee, jeevan ka lakshya shayad prem kee sarvochch avastha ko paa lena hai

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