Friday, October 14, 2011

अपने से आगे निकलना चाहता हूँ

जगजीत सिंह की गाई
क़तील शिफाई की लिखी ग़ज़ल
"अपने होठों पर सजाना चाहता हूँ
आ तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूँ"  
की बहर में कई बरस पहले चार शेर कहे थे
जगजीत सिंह की याद को समर्पित करते हुए
उनके प्रति श्रद्धा और प्रेम के साथ पेश हैं
(चिट्ठी ना  कोई  सन्देश …
जाने  वो  कौन  सा  देश,  जहा  तुम  चले  गए .. )


"अपने से आगे निकलना चाहता हूँ
मैं तुझे छूकर पिघलना चाहता हूँ

जिसकी बाँहों ने गगन थमा हुआ है
थाम कर उसको संभलना चाहता हूँ

जिसकी सूरत एक सी रहती हमेशा
मैं उसे क्यूं कर बदलना चाहता हूँ

जो किसी की आँख से देखा न जाए
मैं उसी रस्ते पे चलना चाहता हूँ


अपने से आगे निकलना चाहता हूँ
मैं तुझे छूकर पिघलना चाहता हूँ"

- अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका   

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