उस दिन
आदतन तुम्हें याद कर लेने के बाद
जब
बदलता दिखा
हवाओं का रुख,
जब छू गया
खुशबू का एक झोंका मुझे,
जब
क्षितिज से किसी
अदृश्य हाथ ने बढ़ कर
गुदगुदा दिया मुझे,
जब
एकाएक भंवर खुद
कश्ती बन कर
मुझे पार पहुँचाने के
लिए प्रस्तुत हो
गर्वित हो गया सहसा,
जब
एकाएक मेरा अपने आपसे
रिश्ता
बदला-बदला
खिला-खिला
आश्वस्ति के उजाले में नहाया सा लगा
तब
मैं ने अपने आपको धन्यवाद दिया
कि
आदतन मैंने तुम्हें पुकारा
यानि
कोई एक आदत तो अच्छी है मेरी
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
1 comment:
यदि याद करने की आदत बनी रहे तो कृपा भी बनी रहेगी।
Post a Comment