Saturday, September 10, 2011

हमारा सामूहिक ध्यान



अब
पुरस्कार लेकर
मंच से उतरते हुए भी
प्रसन्नता के कम्पन्न
नहीं होते ह्रदय में
वह
इस तरह
पचा गया है
सफलता की अनुभूति
की
अपने लिए 
सहानुभूति का पात्र 
  हो गया है     



अब  
स्तरहीनता पर
आश्चर्य नहीं होता,

 दिन-दिन  
 बड़े पैमाने पर 
'त्याज्य पदार्थ और मूल्य'
 प्रकाशित केंद्र में
पहुँच कर
छीन रहे हैं
हमारा सामूहिक ध्यान,

   खुलेपन के नाम पर
     जीवन की गरिमा, सौन्दर्य और संवेदनशीलता के प्रति
    बंद होते जा रहे हम.


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१० जून २०११ को लिखी
  १० सितम्बर २०११ को लोकार्पित
 

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

गरिमामयी अस्तित्व।

सुंदर मौन की गाथा

   है कुछ बात दिखती नहीं जो  पर करती है असर  ऐसी की जो दीखता है  इसी से होता मुखर  है कुछ बात जिसे बनाने  बैठता दिन -...