अब
पुरस्कार लेकर
मंच से उतरते हुए भी
प्रसन्नता के कम्पन्न
नहीं होते ह्रदय में
वह
इस तरह
पचा गया है
सफलता की अनुभूति
की
अपने लिए
सहानुभूति का पात्र
हो गया है
२
अब
स्तरहीनता पर
आश्चर्य नहीं होता,
दिन-दिन
बड़े पैमाने पर
'त्याज्य पदार्थ और मूल्य'
प्रकाशित केंद्र में
पहुँच कर
छीन रहे हैं
हमारा सामूहिक ध्यान,
खुलेपन के नाम पर
जीवन की गरिमा, सौन्दर्य और संवेदनशीलता के प्रति
बंद होते जा रहे हम.
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१० जून २०११ को लिखी
१० सितम्बर २०११ को लोकार्पित
1 comment:
गरिमामयी अस्तित्व।
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