सुना तो था
की होता है ऐसा
सबके बीच होकर भी
सबसे अलग
छूकर छा जाता है
मानस में
उस 'अदृश्य' का होना
और
भर जाते हैं ह्रदय में
अनुपम आश्वस्ति
अतुलनीय समृद्धि
और
अपार प्रेम के साथ
सूक्ष्म, सरस आनंद
उसके होने की कौंध
खोल देती है
विस्मयकारी सहनशीलता
सुलभ करवाती है
समन्वयकारी दृष्टि
माधुर्य के साथ
बिन प्रयास
सध जाता है लक्ष्य
उसका माध्यम होने का गौरव
से उतरती है
अंतस में जो
परम तृप्ति,
इसके आलोक में
सुन्दर सार श्रृंगार कर लेता है जीवन
आज जब अनुभव में आ गयी
यह सुनी सुनाई बात
संकोच होता है
किसी से कहने में
कौन मानेगा की
"जो दीखता है
वो नहीं है
और जो दीखता नहीं है
सचमुच तो बस वही है"
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
६ सितम्बर २०११
2 comments:
आज जब अनुभव में आ गयी
यह सुनी सुनाई बात
संकोच होता है
किसी से कहने में
कौन मानेगा की
"जो दीखता है
वो नहीं है
और जो दीखता नहीं है
सचमुच तो बस वही है"
बस जो दिखता नहीं है,उसे देखने के लिए
मन की आँखें चाहिये न.पर उसे देखने पर
मन कहाँ रहता है यह भी तो अज्ञात हो जाता है.
है न अदभुत तिलस्म जाल,इसीलिए तो शायद संकोच हो रहा है आपको किसी से कहने में.
किसी से कहने में
कौन मानेगा की
"जो दीखता है
वो नहीं है
और जो दीखता नहीं है
सचमुच तो बस वही है"
मानने वाले लोंग भी हैं जैसे मुझे भी बिलकुल अपनी सी ही अभिव्यक्ति लग रही है!
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