सत्य क्या है
इस बार अपने आधार के हिलने पर
अपनी हलचल पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए
स्वयं से पूछा उसने
और भीतर से
कौंध गया उत्तर
"सत्य वो परम आश्वस्ति
जो तुम्हारे अनुभव जगत में मंडराती
तुम्हारे मन में खलबली मचाती
तुम्हें डराती
या तुम्हारा चैन चुरा ले जाती
सारी हलचल को झूठ बना देती है "
२
इस बार अपने आधार के हिलने पर
अपनी हलचल पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए
स्वयं से पूछा उसने
और भीतर से
कौंध गया उत्तर
"सत्य वो परम आश्वस्ति
जो तुम्हारे अनुभव जगत में मंडराती
तुम्हारे मन में खलबली मचाती
तुम्हें डराती
या तुम्हारा चैन चुरा ले जाती
सारी हलचल को झूठ बना देती है "
२
अब वो स्वयं से पूछने लगा
क्या करूँ की सत्य मेरा आधार हो जाए
जवाब कौंधा
"चौकन्ने हो जाओ
चौकन्ने होकर देखो
हर विचार, हर भाव, हर कामना का उठना
देखो सब कुछ
अनंत के आलोक में,
और अनुभूति क्षेत्र
जब नित्य निरंतर
संवित स्पंदन से अनुनादित हो जायेगा
तुममें
और सत्य में
कोई अंतर नहीं रह पायेगा"
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१ सितम्बर २०११
9 comments:
"सत्य" की जीत को कौन नकार सकता है …।किंतु सब इस बात से भिग्य होते हुए भी चाहे इसे युग प्रभाव कहें या सुख के लिये अंधी दौड़……सब अनभिग्य बने हुए हैं……बहुत ही सुंदर रचना।
वाह वाह्……………गज़ब …………सत्यबोध कराती रचना के लिये बधाई स्वीकारें।
विघ्नहर्ता विघ्न हरो
मेटो सकल क्लेश
जन जन जीवन मे करो
ज्योति बन प्रवेश
ज्योति बन प्रवेश
करो बुद्धि जागृत
सबके साथ हिलमिल रहें
देश दुनिया के नागरिक
श्री गणेशाय नम:……गणेश जी का आगमन हर घर मे शुभ हो।
अन्दर भी और बाहर भी।
सुंदर रचना के साथ आपने अपने नाम से प्रभु मूरत बनाई है ....निश्चय ही काबिले तारीफ़ है ...
प्रभु सबका भला करें यही कामना है ....
वाह! बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति...
सादर बधाई...
सत्य को कहती अच्छी प्रस्तुति
अत्यंत ही प्रभावशाली रचना हेतु बधाई.गर्व की बात है कि न्यूयार्क में भी अपनी संस्कृति का अलख जगा रहे हैं.
बहुत ही दार्शनिक चिंतन सत्य का अन्वेषण करती अभिव्यक्ति आपको कोटि कोटि बधाईयां एवं हार्दिक सादर शुभ कामनाएं !!!
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