तो इसी तरह चलती है दुनियां
कभी दबाव, कभी खिंचाव
कभी छुपाव, कभी लगाव
और
चलते चलते कभी कभी
अप्रत्याशित घाव
इसी तरह सरकती है वेदना
चुप चाप
पुण्य ही लगता है
अपना पाप
अंगुलियाँ उठाते हुए
दूसरों को गलत ठहराते हुए
किसी कमजोरी का मुहँ रह जाता है खुला
बिरला ही होता है दूध का धुला
फिर भी
सफ़ेद रंग आज तक सफ़ेद है
डूबती है वो नाव
जिसके पेंदे में छेद है
देख समझ कर भी
हम अब तक चाहते है जादुई समाधान
अब क्या करें
सारा जीवन, जादू ही तो है श्रीमान
किसी जादू से
मंच पर आता है बदलाव
किसी जादू से
लडखडाती है चुनी हुई नाव
सत्य, त्याग और सेवा का जादू
सर पर चढ़ कर बोलता है
जादू का ये वाला खेल
कोंई गाँधी, कोंई अन्ना ही खोलता है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२३ अगस्त 2011
6 comments:
बहुत सुन्दर
कल 31/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
सत्य, त्याग और सेवा का जादू
सर पर चढ़ कर बोलता है
जादू का ये वाला खेल
कोंई गाँधी, कोंई अन्ना ही खोलता है
वाह बहुत ही सुंदर ढंग से जीवन के सारे रंग को अपनी रचना में प्रस्तुत किया है /बहुत बेमिसाल अभी ब्यक्ति /बहुत बधाई आपको /
please visit my blog
www.prernaargal.blogspot.com thanks
गहन अभिव्यक्ति
बढ़िया प्रस्तुति
सत्य, त्याग और सेवा का जादू
सर पर चढ़ कर बोलता है
जादू का ये वाला खेल
कोंई गाँधी, कोंई अन्ना ही खोलता है
बहुत सुन्दर मन के भाव को स्पष्ट शब्दों में ब्यान करती खूबसूरत रचना |
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