Thursday, August 11, 2011

अपेक्षित बदलाव की धारा


(चित्र - विशाल व्यास, स्थल- मेहरानगढ़ दुर्ग से मेरा जोधपुर)


बदलाव उतना दूर नहीं होता
जितना हम सोच लेते हैं
 अपने जड़ता में जकड़े-जकड़े  

नहीं करते विचार
बस उठ कर खिड़की से पर्दा हटाने 
   या कमरे में कांच की दिशा बदल देने मात्र से 
बह सकती है 
  अपेक्षित बदलाव की धारा,

   हम कितनी उर्जा लगा लगा कर
  अपनी निष्क्रियता के समर्थन में
    नए नए तर्क बनाते हैं
 और अपने ही विरुद्ध 
  एक लड़ाई सी लड़ते जाते हैं
   फिर होता ये है
  की एक दिन जीत कर भी
 हारे हुए नज़र आते हैं


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
११ अगस्त २०११  

3 comments:

Rakesh Kumar said...

बदलाव उतना दूर नहीं होता
जितना हम सोच लेते हैं
अपने जड़ता में जकड़े-जकड़े

बहुत सही कहा है अशोक भाई आपने.
जड़ता से बाहर आना ही होगा.

कोशिश और प्रभु कृपा दोनों चाहियें इसके लिए.

लगता है आप बहुत व्यस्त हैं आजकल.
आपसे बात करके अच्छा लगता है मुझे.

sunil purohit said...

सुंदर और सकारात्मक सोच |

प्रवीण पाण्डेय said...

एक विचार के पट के परे है बदलाव।

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