Friday, June 10, 2011

जो शब्द बनता है



यही तो चाह था
मेज-कुर्सी
एकांत
खाली कागज़
पेन
और
ऐसा मौन
जिसमें
आवाहित किया जा सके
उसे
जो शब्द बनता है
अर्थ बनता है
और
जोड़ कर
शब्द को अर्थ से
सार्थक कर देता है
मेरा होना

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१० जून २०११ 

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

शब्द वस्तु को अर्थ देते हैं।

सुंदर मौन की गाथा

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