यह झकाझक उजाला
प्रसन्नता की किलकारियां
खिलकाती किरणें
फ़ैल कर खो बैठी हैं
अपना मूल स्वरुप
पर मिलने-जुलने में
खोकर
अपना सर्वस्व बाँट लेने की उदारता में
याद ही नहीं इन्हें
की क्या खोया है
शायद यह बोध भी न हो
की क्या पाया है
खोने और पाने से परे
अव्यक्त आनंद का सूत्र बन जाना
किरणों को किसने सिखाया है?
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
गुरुवार, ३० जून २०११
2 comments:
लहरों और किरणों की आनन्द अभिव्यक्ति, सुन्दर निरूपण।
अच्छे शब्दों का प्रयोग बधाई
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