ॐ
उदगम
प्रवाह
गति
लय
अनुबंध
प्रबंध
उल्लास
विश्वास
महारास
२
पोंछ कर
दिन-रात का अंतर
साँसों में
मुस्कुराये शिव शंकर
खोने पाने से परे
गूँज उठा
अक्षय तृप्ति का स्वर
३
सार
उजियारा
विस्तार
अमृत
आत्मीय पगडण्डी
पीपल की छाँव
विश्रांति
विराम
खुल गया
पूर्णता का पैगाम
४
अभी दृश्यमान
अभी ओझल
कौन नहीं है
चंचल
किनारे के मोह में
खुला नहीं लंगर
देख नहीं पाए
लहरों का घर
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२९ जून २०११
2 comments:
ॐ
उदगम
प्रवाह
गतिलय
अनुबंध
प्रबंध
उल्लास
विश्वास
महारास
शब्दों की शानदार प्रस्तुति सम्मोहन कर रही है मन का.
क्या महारास प्रस्तुत किया है अशोक जी आपने
किनारे के मोह में
खुला नहीं लंगर
देख नहीं पाए
लहरों का घर
नई पोस्ट लिखने का साहस किया है.
आपका अनुराग और स्नेह चाहता हूँ.
'चाहत' का ही तो सब खेल है.
शब्द-लहर का उछाल और आनन्द-फेन।
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