Tuesday, June 28, 2011

व्योम तन लेकर


यह कैसे
सहसा 
अपनी बाँहों में भर कर
उजियारे का शीतल स्पर्श
उंडेल कर मेरी साँसों में

खोल कर अवगुंठन 

शिखर की ओर
लिए चलते हो
तुम मुझे
मुझ से भी मुक्त कर

विस्तार, उल्लास, 
अनिर्वचनीय शांति का
मद्धम गतिमान झरना सा

प्रसन्नता के नए पुष्प जो
खिल गए हैं
धरा के इस छोर से
उस छोर तक

इन सबको
तुम्हें अर्पित करने की चाह लिए

मैं विलीन क्षितिज में
मुस्कुरा रहा हूँ
व्योम तन लेकर


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
                  मंगलवार, २८ जून २०११            

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

हाथ खोल बाहों में आसमान भर लेना चाहता हूँ।

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