थकान के बीच
शेष रहती है
कोमल, ताज़ी हवा
और थोड़ी सी मिटटी
जिसमें संकल्प का बीज रोप कर
देखना चाहता हूँ
तुम्हारा वो चेहरा
जिससे मिट जाता है
अधूरापन
छलछलाता है
पूर्णता का बोध
और अमूर्त भाव में भी
आनंद का स्वाद लेता
झूम झूम जाता हूँ मैं
अशोक व्यास
१९ जून २०११
1 comment:
गहरी साँस भर उसे याद करने से थकान न जाने कहाँ चली जाती है।
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