पहुँच कर
कहाँ, कितनी
देर ठहरना
इसकी समझ
अनुभव संपत्ति पर
कितना प्रभाव डालती है
इसका पता जब चल जाता है
जीवन का स्वरुप बदल जाता है
२
मन का मौसम हाथ तुम्हारे
पतझड़-वसंत, सब साथ तुम्हारे
तुम अनंत की दीपशिखा हो
कर लो अपने वारे-न्यारे
३
जीवन बंधन से नहीं
बंधन में नहीं
मुक्ति में है
विस्तार में है
आग्रहों का बंधन जो छोड़ पाया
वो विराट को भी अपनी तरफ मोड़ पाया
४
जो जो अपेक्षा की खींच-तान कर लेता है पार
उसके लिए हर पल लेकर आता है मधुर बहार
जो 'होने' 'न होने' में देख पाता है सार-श्रृंगार
उसका स्मरण भी देता है आश्वस्त आधार
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
बुधवार, १५ जून २०११
2 comments:
बेहत प्रभावशाली संवेदनशील पंक्तियाँ
कब तक समेटना है और कब से लुटाना है?
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