Monday, June 13, 2011

अमृतमय सरोवर की आलोकित सीढियां


सुबह सुबह
अज्ञात स्थल पर
सजे हुए ज्ञात भाव
देख कर
साँसों के सार से
दृष्टि हटने की
सम्भावना देख कर
बढ़ाना चाहता हूँ अपनी सतर्कता

क्या क्या देखना है
क्या क्या सुनना है
क्या क्या कहना है
किस किस तरह के प्रभाव से करना है श्रृंगार
और कैसे बोध को भेजते रहना है क्षुद्रता के पार

सुबह सुबह
निश्छलता से अपना सौंदर्य उंडेलने के लिए
खिलते हुए फूल की
रणनीति की तरह
दिन को
सजगता से सुरक्षित करने
देखते हूँ
विराट के संकेत
और
सहज ही
बन जाता है
समन्वय बनाता 
माधुर्य बढाता
एक तारतम्य

अपनी प्राथमिकताओं की सजावट को
छलने वाली स्थिति टल जाती है

यह क्षण
जब पूरी तरह सुरक्षित हो जाता है
अनंत की करूणा में भीग कर
खुल जाती हैं 
अमृतमय सरोवर की आलोकित सीढियां

बस यहाँ से शुरुआत है
एक नए दिन की
यह सुन्दर, सार्थक, आनंद से परिपूर्ण
अमृतमय दिन
मैं
तुम्हारे साथ बांटना चाहता हूँ
और यह चाहत भी
उसके चरणों में सौंपता हूँ
जिसके देखे से
मैं मैं बनता हूँ
और
दिन दिन बनता है

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सोमवार, १३ जून २०११  
 

   
   

3 comments:

Unknown said...

अशोक जी आपकी कविताओं में छायावादी तत्व कविता को चार चाँद लगा देते है बधाई

प्रवीण पाण्डेय said...

वही मिले जिससे मैं मैं बन जाये।

Vivek Jain said...

बहुत बढ़िया रचना, बधाई |

- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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