तुमने इतने समीप से देख लिया
मुझे
की अब मेरे एकांत में
तुम्हारे होने का अतिरिक्त बोध भी
ठहर गया है
पूरी तरह
मौन एकांत तक पहुँच कर
सम्पूर्ण स्वर्णिम धार को
आवाहित करने का भाव लिए
जब देखता हूँ
अपने भीतर
नंदनवन की नीरवता
सहसा सारे बोध
घुल-मिल कर
रच देते हैं
एक सुन्दर तन्मयता
वह सब
जो छूट सकता है
छूट जाता है
बस एक
अच्युत गाता है
एक अनूठा उद्भव है
न कोई सुनता है, न सुनाता है
पर कण कण में अनंत की गाथा है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१९ मई २०११
3 comments:
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
सहसा सारे बोध
घुल-मिल कर
रच देते हैं
एक सुन्दर तन्मयता
तन्मयता ही अभीष्ठ है.
आपकी सुन्दर तन्मयता का बोध कराती
अनुपम प्रस्तुति के लिए हृदय से आभार.
एक वही बोध तो है जो सदा साथ रहता है।
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