Tuesday, May 17, 2011

सुनहरी हो गयी उसकी लिखाई


देखी जितनी जितनी ऊंचाई
दिखी है, उसकी ही गहराई

  नहीं रोता पहले की तरह
जब रूठ जाती है परछाई

 बड़े काम की लगती है अब
ये दौलत, जो उसने दिखाई

उसे देने को क्या है पास मेरे
अपनी पहचान, उसी से पाई   

माँ ने गोदी में लेके दिखलाया
सुनहरी हो गयी उसकी लिखाई   

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१७ मई २०११  

 

 

  



  
 

5 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

बड़ा ही अच्छा।

Rakesh Kumar said...

बड़े काम की लगती है अब ये दौलत,
जो उसने दिखाई
'न गुरोरधिकं तत्वं ,न गुरोरधिकं तप:'
वही गुरुरूप में हमें 'तत्वज्ञान' रुपी ऐसी दौलत प्रदान करता है जिसका जितना अनुसंधान किया जाये उतनी ही वह और काम की नजर आती है.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

उसे देने को क्या है पास मेरे
अपनी पहचान, उसी से पाई

माँ ने गोदी में लेके दिखलाया
सुनहरी हो गयी उसकी लिखाई


सुन्दर भाव रचना के ...

Anupama Tripathi said...

बड़े काम की लगती है अब ये दौलत, जो उसने दिखाई
उसे देने को क्या है पास मेरेअपनी पहचान, उसी से पाई
बहुत सुंदर भाव से लिखी रचना ...!!

planetpc said...

Such a awesome tribute to our lord guru ji

jai ho sir


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