देखी जितनी जितनी ऊंचाई
दिखी है, उसकी ही गहराई
नहीं रोता पहले की तरह
जब रूठ जाती है परछाई
बड़े काम की लगती है अब
ये दौलत, जो उसने दिखाई
उसे देने को क्या है पास मेरे
अपनी पहचान, उसी से पाई
माँ ने गोदी में लेके दिखलाया
सुनहरी हो गयी उसकी लिखाई
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१७ मई २०११
5 comments:
बड़ा ही अच्छा।
बड़े काम की लगती है अब ये दौलत,
जो उसने दिखाई
'न गुरोरधिकं तत्वं ,न गुरोरधिकं तप:'
वही गुरुरूप में हमें 'तत्वज्ञान' रुपी ऐसी दौलत प्रदान करता है जिसका जितना अनुसंधान किया जाये उतनी ही वह और काम की नजर आती है.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.
उसे देने को क्या है पास मेरे
अपनी पहचान, उसी से पाई
माँ ने गोदी में लेके दिखलाया
सुनहरी हो गयी उसकी लिखाई
सुन्दर भाव रचना के ...
बड़े काम की लगती है अब ये दौलत, जो उसने दिखाई
उसे देने को क्या है पास मेरेअपनी पहचान, उसी से पाई
बहुत सुंदर भाव से लिखी रचना ...!!
Such a awesome tribute to our lord guru ji
jai ho sir
ravi bissa
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