Sunday, May 15, 2011

एक मौन खिलखिला रहा था


आज रास्ते में कोई कविता नहीं थी
आज रास्ता था ही नहीं
बस  मंजिल ही मंजिल थी

साथ कोई नहीं
पर अकेलापन भी नहीं था

आज
बादल बरस चुके थे
हरे हरे पत्तों में
एक मौन खिलखिला रहा था 
और
साफ़ आसमान  में
पंख लहरा कर उड़ता एक पंछी
ना जाने कैसे
आनंद से भिगो गया
कण कण


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१५ मई २०११      

3 comments:

Rakesh Kumar said...

आज रास्ते में कोई कविता नहीं थी
आज रास्ता था ही नहीं
बस मंजिल ही मंजिल थी

भक्ति में रास्ता मंजिल ही तो नजर आता है.हर पल हर क्षण बस आनंद ही आनंद.

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत सुन्दर।

vandana gupta said...

जब सब संशयों का समाधान हो जाता है और अपना आप ही बचता है जब् खुद की पह्चान हो जाती है तब ऐसा ही महसूस होताहै।

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