आज रास्ते में कोई कविता नहीं थी
आज रास्ता था ही नहीं
बस मंजिल ही मंजिल थी
साथ कोई नहीं
पर अकेलापन भी नहीं था
आज
बादल बरस चुके थे
हरे हरे पत्तों में
एक मौन खिलखिला रहा था
और
साफ़ आसमान में
पंख लहरा कर उड़ता एक पंछी
ना जाने कैसे
आनंद से भिगो गया
कण कण
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१५ मई २०११
3 comments:
आज रास्ते में कोई कविता नहीं थी
आज रास्ता था ही नहीं
बस मंजिल ही मंजिल थी
भक्ति में रास्ता मंजिल ही तो नजर आता है.हर पल हर क्षण बस आनंद ही आनंद.
बहुत सुन्दर।
जब सब संशयों का समाधान हो जाता है और अपना आप ही बचता है जब् खुद की पह्चान हो जाती है तब ऐसा ही महसूस होताहै।
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