उसके चरणों में
चाँद सी शीतलता
उसके नयनो से
झरती है
कालातीत वैभव की आभा
अपना बिखराव
और टूट-फूट लेकर जब-जब
उसके शब्दों तक जाता हूँ
हर बार
प्रफुल्लित पूर्णता का
प्रसाद पाता हूँ
उसके संकेत सहेजने
का अभ्यास करते करते
जीवन का सौंदर्य छू पाता हूँ
विलक्षण कृपा है
उसे आवाहित कर
विस्मृति से बाहर आता हूँ
और
अनंत के स्पर्श से
धन्य हो जाता हूँ
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
११ मई २०११
3 comments:
विस्मृति से बाहर आता हूँ
और
अनंत के स्पर्श से
धन्य हो जाता हूँ
ऐसी विस्मृति जो छाई रहे स्मृति पर ...!!
सुंदर रचना ..!!
मेरा भी प्रणाम।
अनन्त का स्पर्श भाग्यशाली ही कर पाते हैं.जिन्होंने अपने को पा लिया है वे ही अनन्त का स्पर्श पाने के योग्य हैं.मै धन्य हूँ आपकी इस सुन्दर भक्तिपूर्ण अभिव्यक्ति को पढकर.
Post a Comment