Sunday, May 1, 2011

वो जुड़ता ही ऐसे है


उसने अपनी हथेली से
बिखेर दिए 
कुछ नए बीज
कुछ नयी संभावनाओं की फसलें 
उग जायेंगी इतनी जल्दी 
उसके चरणों का स्पर्श करके

ऐसा सोचा न था
उसने मुस्कान से सींच कर मन
मिटा दी जैसे
जन्म-जन्मान्तर की प्यास

वो जुड़ता ही ऐसे है
की जोड़ देता है सबसे
और
ये जुड़ाव जिस फैलाव को
सुलभ कर देता है
सहज ही

इसमें 
प्यार की अनिर्वचनीय आभा
दिलाती है याद
बीज सारी संभावनाओं के
लाये थे
उसकी हथेली का स्पर्श
और
उपलब्धियों की सारी फसलें
उसी को सौंपने की चाह लिए


मैं 
मन ही मन
मुस्कुराता हूँ
और
सारे जगत को
प्रेम से
अपनाता हूँ


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
रविवार, १ मई २०११    
            

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

मैं
मन ही मन
मुस्कुराता हूँ
और
सारे जगत को
प्रेम से
अपनाता हूँ

कौन किसमें समाया है, ज्ञात नहीं।

Anupama Tripathi said...

बीज सारी संभावनाओं के
लाये थे
उसकी हथेली का स्पर्श
और
उपलब्धियों की सारी फसलें
उसी को सौंपने की चाह लिए

तेरा तुझको अर्पण ..प्रभु क्या लागे है मेरा .....!!
बहुत सुंदर भाव .

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सब कुछ प्रभु में ही समाया है ..सुन्दर अभिव्यक्ति

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