Thursday, March 24, 2011

पूर्णता देखने वाली आँख






ठण्ड, चाय, बिस्किट
सुबह के पहले वाला अँधेरा
लो कुछ देर में 
शुरू हो जाएगा 'तेरा-मेरा'


यात्रा पहुँचने के लिए
और पहुँच कर भी जारी यात्रा
स्मृति की पटरी पर
चेतना टटोलती है
उस स्टेशन का स्पर्श
जहाँ से
शुरू हुयी थी यात्रा


        ३

अधूरे सपने हैं या आँख?
सवाल पूछ कर
सर्वनियन्ता ने
दे ही दी मुझे
पूर्णता देखने वाली आँख

पलक झपकते ही
दिशा बदल कर
दशा बदलना जानता है
हर दिशा का रूप लेकर
लुका-छुप्पी खेलने वाला
वह
एक 


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
गुरुवार, २४ मार्च २०११         

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

यह खेल मानसिक स्तर पर भी उतर जाता है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सारी क्षणिकाएं अच्छी लगीं ...सार्थक और सटीक

Ashok Vyas said...

dhanyawaad praveenjee aur Sangeetajee

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