याद तुम्हारी
मोती जैसी
हंस बना मैं चुगता हूँ
गति तुम्हारे
साथ निरंतर
साथ तुम्हारे रुकता हूँ
२
लुप्त हुआ
सारा कोलाहल,
मिटा दिया
तुमने मन का छल,
ओ ज्योतिर्मय
सूक्ष्म कलायुत
ओ अनंत
तुम अद्भुत संबल
३
रिमझिम बूंदों में
तुम आये
सूर्यकिरण बन कर
मुस्काये
पवन तुम्हारी
आश्रित अच्युत
पत्ती पत्ती
तुमको गाये
४
संवेदन तुम
मन वसंत तुम
धारा तुम
और आदि-अंत तुम
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
बुधवार, २३ मार्च 2011
5 comments:
अद्भुत प्रवाह, आनन्द-अभिव्यक्ति।
अशोक जी मैं उस दिन को धन्यवाद दे रहा हूं जब आप मेरे ब्लॉग पर आये और मुझे आपके ब्लॉग पर आने का सौभाग्य मिला। जब जब आपकी कविताओं को पढ़ता हूं हर बार कई कई बार पढ़ता हंू। हर बार मुंह से वाह वाह निकलती है। धन्यवाद इस नेट की दुनिया को जिसने सात समुन्दर पर भी आप जैसी प्रतिभा को मुझ जैसे गांव में बैठे लोगों तक पहूंचाने का काम किया।
बहुत ही सार्थक और सारगर्भित रचना। आभार।
बहुत ही सार्थक रचना।
याद तुम्हारी
मोती जैसी
हंस बना मैं चुगता हूँ
bahut khoobsurat kavita likhe hain....
वंदनाजी, प्रवीणजी, कुश्वंश्जी, मृदुलाजी और साथी अरुण जी का
ह्रदय से आभार, जुड़ने के भाव को व्यक्त करती रचना को
आपकी पंक्तियों से 'प्रेम और उत्साह' का महत्वपूर्ण आधार मिला
धन्यवाद
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