Wednesday, March 9, 2011

अब दृष्टि भी दो ना !


उल्लास का ज्वार सा
यह 
भोर की चुलबुली किरणों सा
कौन बिछा देता है
मन के भीतर

जाग उठता है
 शुद्ध, स्वच्छ विश्वास
जोड़ता है जो सबसे

जैसे साँसों का सृष्टि के कण कण से सम्बन्ध है
जैसे जहाँ तक जाती है दृष्टि
सब कुछ अपनेपन में नहाया सा दीखता है

और
जब अपने मौन में निमग्न
प्रकट रूप में असम्पृक्त सा सबसे 

होता हूँ
लीन अपनी पूर्णता के बोध में
तब भी
धडकता रहता है
सबके साथ समन्वित होने का
एक सुन्दर, मधुर बोध

इस क्षण की आभा में
यह असीम वैभव
है तो सबका
पर बिना देखे 
परे रह जाता है
अनुभव से

ओ दाता
दे दिया है सब कुछ
अब दृष्टि भी दो ना !  

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
बुधवार, ९ मार्च २०११  
     

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

नमन सर्वदृष्टा को।

Anupama Tripathi said...

ओ दाता
दे दिया है सब कुछ
अब दृष्टि भी दो ना !


bahut sunder rachna-
badhai .

सुंदर मौन की गाथा

   है कुछ बात दिखती नहीं जो  पर करती है असर  ऐसी की जो दीखता है  इसी से होता मुखर  है कुछ बात जिसे बनाने  बैठता दिन -...