वह सब
जो सोचा नहीं गया पहले से
आ जाता है जब
सामने
बिना सोचे निकल जाते हैं
अपने रास्ते पर
अक्सर हम
पर कभी
उठाते हैं सवाल
अनपेक्षित के आगमन पर
कोसते हैं स्वयं को
उसके लिए
जिस पर हमार अधिकार नहीं
और
अनदेखा रह जाता है
वह
जो किया जा सकता था
हमारे द्वारा
यह अनकिया
मिल जाता है
भविष्य में किसी मोड़ पर
चिंतित करने वाला घेरा बन कर
पूछता है सवाल
क्यों नहीं किया मुझे तब
अब मैं अनगढ़ हूँ
तुम भी हो रहो अधूरे
ऐसे में भी
एक कुछ है
जाग्रत हमारे भीतर
तत्पर
हमें हर किये-अनकिये से मुक्त कर
अपनी अगम्य शोभा हमारे साथ बांटने
पर आदत ऐसी है
'सूर्य को प्रकाशित करने वाला प्रकाश' भी
रह जाता है
अनदेखा भीतर हमारे
हां
हम असंभव को संभव कर सकते है
कभी दिन को रात बना कर
कभी रात को दिन बना कर
आज सोच लें
तय कर लें
अपने भीतर
शाश्वत स्वर्णिम दिन अपनाएंगे
जहाँ भी जायेंगे
अपने अनंत वैभव को ना भुलायेंगे
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
मंगलवार, ८ मार्च २०११
6 comments:
उसी सांस्कृतिक वैभव का प्रभाव है कि हम अभी तक सुसंस्कृत हैं।
Dhanyawaad Praveenjee
aur
Charcha Manch se jod kar
anand vistaar karne ke liye
Vandanajee ka abhaar.
Jai Ho viraat kee pag pag par
शाश्वत स्वर्णिम दिन अपनाएंगे
जहाँ भी जायेंगे
अपने अनंत वैभव को ना भुलायेंगे
गंभीर प्रण करती हुई sunder रचना -
बधाई .-
pran ko rekhankit karne ke liye dhanywaad anupamajee
Ashok ji:
Aapne shabdo ko khubsurati se bunkar inke arth aur bhav ko bahuyami bana diye hai. Aapke vichar uttam hai!
Mera tau hamesha se yehi manana raha hai, vaibhav wohi jo bhoga bhi aur badhaya bhi jaye! Bhulane ka prashn hi kaha?
कमलेशजी
धन्यवाद
संकेत, 'अनंत वैभव' का है, अनंत को कैसे बढाया जा सकता है?
बात 'भोग' की नहीं, उसकी है जो हर पल 'काल रूप' में हमें भोग रहा है
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