यात्रा
अपने साथ लिए चलती है
सम्भावना
सुख और दुःख की
रिश्तो की लहरों में
डूबते-उतरते
कभी जब
घिर आते हैं
आशंका के बादल
बदल जाती हैं
दिन की प्राथमिकता
तीव्र हो जाती प्रार्थना
पुकार को जब मिल
जाता है प्राप्य
विस्मृत हो जाते
तनाव भरे क्षण
धीरे धीरे विरल होता जाता
रक्षक के प्रति
कृतज्ञता का भाव
और फिर गति पकड़ लेता
खेल अपने-पराये का
अशोक व्यास
१२ फरवरी 2011
2 comments:
बड़ा रोचक है मन का यह खेल।
Jee Praveenjee
man ke haare haar
man ke jeete jeet
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