बैठ कर
आँख मूंदे
मुस्कुराता हुआ वह
क्या कट गया है संसार से
या जुड़ गया वैसे
जैसे जुड़ने के लिए
देखना या दिखाई देना जरूरी नहीं
२
उसके हाथों में
जितनी ताकत दिखती है
उससे कहीं ज्यादा आ जाती है
जरूरत के वक्त
उसने सब छोड़ कर
अपना लिया है सबको ऐसे
कि जैसे
अर्थ को अपना लेते हैं शब्द
३
उसने जितना लिया
उससे कई गुना ज्यादा दिया
कैसा अद्भुत है उसका जीवन
सीमित लेकर असीमित देता रहा है
बिना जताए
जैसे माँ बच्चे को
दूध पिलाये
४
उसका चिंतन
पावनता की पून्च्जी है
सृजनशील पगडंडी पर
चलने का आमंत्रण है
हर आयाम में
सत्य को देखने और अपनाने
का प्रण है
आचमन से अभिषेक तक
संकल्प से आरती तक
एक जो सूत्र है
वो वही है
उसका चिंतन, सिर्फ चिंतन नहीं
मेरा पूरा का पूरा जीवन है
इतना पूरा कि
तथाकथित मृत्यु भी
अंश मात्र है इस जीवन का
जो वह है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
मंगलवार, ८ फरवरी २०११
1 comment:
दार्शनिक अभिव्यक्ति जीवन की।
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