Monday, January 31, 2011

चुप रहने का अर्थ










वहां तक देखो
जहाँ कुछ दिखाई नहीं देता है
हर दिन सीखो -
'देखना',
हर दिन जानो
चीरना अँधेरे को
तोडना हर बंधन को
हिंसा के बिना



सत्य के लिए
नारा नहीं हो सकता कोई
क्योंकी
सत्य चिल्ला- चिल्ला कर
अपनी और ध्यान खींचने से परहेज करता है
शायद इसलिए कि सत्य को हमारी उतनी जरूरत नहीं
जितनी हमें सत्य की 
हमें पाकर भी
सत्य तो सत्य ही रहने वाला है
पर उसे पाकर
रूपांतरण ही हो जायेगा हमारा

सत्य को अपनाने के लिए
एक काम कर सकते हो
चुप रहना सीखो
चुप रहने का अर्थ
आत्म-यंत्रणा नहीं
आत्म-स्वीकरण है


इतने लम्बे रास्ते पर
इतने पहाड़
इतनी नदियाँ
इतने रेगिस्तान 
और सारी ऋतुओं को पार करके
उसने जो सन्देश दिया
वो मुझे अगर
यात्रा शुरू करने के पहले ही
दे देता
तो यात्रा शुरू ही ना होती
हो सकता है
तब इस सन्देश को खोखला मान कर
नकार ही देता मैं

अब तो
इतने सारे आयाम खुल रहे हैं
इतनी गहराई दिखाई दे रही है
लगता है
लौट कर अपने मूल तक पहुँचते पहुचते भी
शायद पूरी तरह
आत्मसात ना हो सके यह बात
कि
अन्ततोगत्वा
'जीवन का अर्थ 
अपने आप को स्वीकारना ही है'
और अब सोच ये रहा हूँ कि
यह मैं को अपनाने वाला 'मैं' है कौन?
अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका
सोमवार, ३१ जनवरी 2011

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

स्वयं से स्वयं की बातें, आश्चर्य है पर होता है।

सुंदर मौन की गाथा

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