Thursday, December 30, 2010

किसी अलौकिक क्षण में

( गुरु दिखलाते हैं विस्तार, - चित्र- चन्द्रशेखर व्यास, साभार संवित ग्रुप से)

नियम इसलिए नहीं
कि 
छुप जाए मेरा नयापन
वरन इस उद्देश्य से
अपनाता हूँ कोई क्रम
ताकि देख पाऊँ
नूतनता निरंतर


नियम जब
जंगली पगडंडी की तरह
रास्ते के साथ साथ
मुझे भी
छुपाने लगते हैं मुझसे

नए सिरे से
बनाना होता है
सम्बन्ध नियम से

फिर-२ 
नई तरह 
व्यस्थित होकर
स्वयं से जुड़ने का प्रयास
किसी कृपाकिरण के स्पर्श से
पा लेता है अपना प्राप्य

उस किरण का सत्कार करने 
नियम अपनाता हूँ
और किसी अलौकिक क्षण में 
नियम के रूप में
कामधेनु को
अपने साथ पाता हूँ
 
 
अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका
गुरुवार, ३० दिसंबर 2010
 
 

3 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

उस किरण का सत्कार करने
नियम अपनाता हूँ
और किसी अलौकिक क्षण में
नियम के रूप में
कामधेनु को
अपने साथ पाता हूँ

बहुत गहनता लिए हुए ...सुन्दर अभिव्यक्ति

प्रवीण पाण्डेय said...

नियम और नयापन, विरोधाभासी लग सकते हैं पर नियमित रूप से लगे रहने से ही नयापन आता है।

Ashok Vyas said...

प्रवीणजी और संगीता जी का धन्यवाद

आलोकित मन मंथन से कामधेनु पायें
ऐसी पावन, मंगल ओजस्वी कामनाएं

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