Sunday, December 26, 2010

खेल जीवन का


परिवर्तन 
बाहर का ही नहीं
भीतर का भी होता ही है
जाने-अनजाने

सहेज कर सुरक्षित धरी हुई कामनाएं
हीरे से कंकर हो जाती हैं
अपने आप
 
खेल जीवन का
सजाती जरूर है कामना
पर पूरी हो या ना हो
कामना से परे हुए बिना
मुक्ति की अनुभूति तो
संभव नहीं

जीवन की सफलता शायद 
इस से नापी जाती है 
कि कामना हो
पर उससे बंधे बिना
बहते रहने का कौशल हो

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२६ दिसंबर २०१०


1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

संस्कारों से बँधना है, जीवन में बहना है।

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