परिवर्तन
बाहर का ही नहीं
भीतर का भी होता ही है
जाने-अनजाने
सहेज कर सुरक्षित धरी हुई कामनाएं
हीरे से कंकर हो जाती हैं
अपने आप
खेल जीवन का
सजाती जरूर है कामना
पर पूरी हो या ना हो
कामना से परे हुए बिना
मुक्ति की अनुभूति तो
संभव नहीं
जीवन की सफलता शायद
इस से नापी जाती है
कि कामना हो
पर उससे बंधे बिना
बहते रहने का कौशल हो
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२६ दिसंबर २०१०
1 comment:
संस्कारों से बँधना है, जीवन में बहना है।
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