है सारा संसार तुम्हारे बस्ते में
फैला प्यार अपार तुम्हारे रस्ते में
जीने की ख्वाहिश का ऐसे मान करो
खिलता जाए सार तुम्हारे रस्ते में
बुरा मिले तो उसमें भी इतना देखो
चुकता हुआ उधार, तुम्हारे रस्ते में
एक कामना शाश्वत तक ले आती है
बाकी तो है ज्वार, तुम्हारे रस्ते में
तुम अपने चेहरे को अपना मत मानो
कहता रंगा सियार, तुम्हारे रस्ते में
गौर से देखोगे तो सब दिख जाएगा
छुप कर रहे बहार, तुम्हारे रस्ते में
अशोक व्यास,
न्यूयार्क, अमेरिका
गुरुवार, १८ नवम्बर २०१०
4 comments:
ला-जवाब" जबर्दस्त!!
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
है सारा संसार तुम्हारे बस्ते में
फैला प्यार अपार तुम्हारे रस्ते में
जीने की ख्वाहिश का ऐसे मान करो
खिलता जाए सार तुम्हारे रस्ते में
अशोक जी, बहुत ही प्रभावशाली ओर सार्थक रचना प्रस्तुत की है आपने, ..बधाई।
बहुत ही सुन्दर।
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