Thursday, November 18, 2010

है सारा संसार तुम्हारे बस्ते में

है सारा संसार तुम्हारे बस्ते में
फैला प्यार अपार तुम्हारे रस्ते में
जीने की ख्वाहिश का ऐसे मान करो 
खिलता जाए सार तुम्हारे रस्ते में
बुरा मिले तो उसमें भी इतना देखो 
चुकता हुआ उधार, तुम्हारे रस्ते में
एक कामना शाश्वत तक ले आती है
बाकी तो है ज्वार, तुम्हारे रस्ते में
तुम अपने चेहरे को अपना मत मानो 
कहता रंगा सियार, तुम्हारे रस्ते में
गौर से देखोगे तो सब दिख जाएगा 
छुप कर रहे बहार, तुम्हारे रस्ते में

अशोक व्यास, 
न्यूयार्क, अमेरिका
गुरुवार, १८ नवम्बर २०१०

4 comments:

संजय भास्‍कर said...

ला-जवाब" जबर्दस्त!!

संजय भास्‍कर said...

किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

महेन्‍द्र वर्मा said...

है सारा संसार तुम्हारे बस्ते में
फैला प्यार अपार तुम्हारे रस्ते में

जीने की ख्वाहिश का ऐसे मान करो
खिलता जाए सार तुम्हारे रस्ते में

अशोक जी, बहुत ही प्रभावशाली ओर सार्थक रचना प्रस्तुत की है आपने, ..बधाई।

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत ही सुन्दर।

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