अब हालात के नाम
नहीं लगा सकते
अपनी जिम्मेवारी का नया पोस्टर
सजाना है स्वजनित उत्साह से
सपनो का नया घर
बुनावट इस घरोंदे की
मांगती है
स्पर्श तुम्हारी आत्मा का,
समीकरण संबंधों का
फिर सिखा रहा है
जोड़-तोड़ से परे का गणित,
जितना जितना
अपेक्षाओं की डोर को ढीला करते जाओगे
पतंग प्यार की
नयी ऊंचाईयों तक पहुँचाओगे
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
3 comments:
जितना जितना
अपेक्षाओं की डोर को ढीला करते जाओगे
पतंग प्यार की
नयी ऊंचाईयों तक पहुँचाओगे
क्या बात है ………………बडी गहरी बात कही है मानवीय और अध्यात्मिक दोनो ही दृष्टिकोण से।
वंदनाजी
आपकी बात 'वन्दनीय' है
धन्यवाद
जीवन पर कई उद्देश्य लाद लेने से उन्मुक्त विकास ठहर जाता है।
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