ये क्या
सब कुछ सबको दिखाई देने लगा है अब
और कोई भी
कुछ भी नहीं देखता
ये असमंजस का काल
हमें
नई तरह से मुक्त करता
और नई तरह से बांधता है
समझ की नई रोशनी लेने
कोई किसी और के द्वार पर
जाने से कतराता है
कभी छले जाने का डर है
कभी अपना ही अहंकार
दीवार बन जाता है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
७ अक्टूबर २०१०
1 comment:
ऊँची है अंहकार की दीवारें।
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