प्रार्थना के फल जब सामने आते हैं
हम उनको देख ही नहीं पाते हैं
दिखता तो है कि जो माँगा, पाया
पर उसे अब एक संयोग ठहराते हैं
और कई बार ऐसा भी होता है
हम प्रार्थना का रूप भूल जाते हैं
मिलने की खुशी मनाना छोड़
नई इच्छा का खेल रचाते हैं
समझाता कोई नहीं, किसी को
वक़्त से क्यूं हम सब हार जाते हैं
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२४ अगस्त २०१०
1 comment:
बड़ी सुन्दर।
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