तब भी था
यह संसार
जब मेरा जन्म नहीं हुआ था
और
रहने वाला है
इस धरातल से मेरी विदाई के बाद भी
संसार का होना
मेरे होने पर निर्भर नहीं है
तो फिर
मेरा होना भी
क्यूं निर्भर हो संसार के होने पर?
२
अपने होने का अपरिवर्तनीय आधार छू लेने
अपने जन्मदिन पर
उस विस्मित अखंड चेतना को बुला कर
क्या पूछ सकते हैं हम
रहस्य अपने होने का?
पर संसार से छूटे बिना
संभव नहीं
यह सूक्ष्म, निःशब्द मुलाक़ात
और हर वर्षगाँठ पर
हम गाँठ खोलना नहीं
और अधिक गांठे लगाना सीखते हैं
३
इस बार यह जान कर कि
गाँठ खोलने का कौशल
कोई दूसरा नहीं सिखा सकता किसी को
सहसा यह बोध भी हुआ है कि
हम चाहते ही नहीं
गांठे खोलना
बंधनरहित होने से एक तरह का भय है हममें
और
निर्भय हुए बिना
खेल निर्भरता का
चलता ही रहने वाला है
एक जन्मदिन से दूसरे जन्मदिन तक
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१२ अगस्त २०१०
2 comments:
बिल्कुल सही कह दिया……………इतना जान लें तो बंधन मुक्त ना हो जायें।
जन्म का चक्र हमारे जीवन का सत्य है।
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