Thursday, August 12, 2010

रहस्य अपने होने का






 
तब भी था 
यह संसार 
जब मेरा जन्म नहीं हुआ था 
और 
रहने वाला है 
इस धरातल से मेरी विदाई के बाद भी
 
संसार का होना 
मेरे होने पर निर्भर नहीं है
 
तो फिर
मेरा होना भी
 क्यूं निर्भर हो संसार के होने पर?

अपने होने का अपरिवर्तनीय आधार छू लेने
अपने जन्मदिन पर
उस विस्मित अखंड चेतना को बुला कर
क्या पूछ सकते हैं हम 
रहस्य अपने होने का?

पर संसार से छूटे बिना
संभव नहीं
यह सूक्ष्म, निःशब्द मुलाक़ात
और हर वर्षगाँठ पर
हम गाँठ खोलना नहीं
और अधिक गांठे लगाना सीखते हैं


इस बार यह जान कर कि
गाँठ खोलने का कौशल
कोई दूसरा नहीं सिखा सकता किसी को
 
सहसा यह बोध भी हुआ है कि
हम चाहते ही नहीं 
गांठे खोलना
बंधनरहित होने से एक तरह का भय है हममें
और
निर्भय हुए बिना
खेल निर्भरता का
चलता ही रहने वाला है
एक जन्मदिन से दूसरे जन्मदिन तक

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१२ अगस्त २०१०

 
 

2 comments:

vandana gupta said...

बिल्कुल सही कह दिया……………इतना जान लें तो बंधन मुक्त ना हो जायें।

प्रवीण पाण्डेय said...

जन्म का चक्र हमारे जीवन का सत्य है।

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