सचमुच में संसार तुम्हारा सच्चा है
छुपा हुआ व्यवहार तुम्हारा अच्छा है
चाहे कोई साथ चले या रुक जाए
पग पग पर आधार तुम्हारा अच्छा है
सोच रहा था साथ उम्र के हुआ बड़ा
पर मुझमें अब तक कोई एक बच्चा है
तुमको बतलाने से बात संवर जाए
वरना मेरी समझ का दाना कच्चा है
छोड़ दिया गर सब कुछ तेरे द्वारे पर
मन में क्यूं फिर लेन-देन का चर्चा है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
बुधवार, ११ अगस्त २०१०
2 comments:
bahut sundar bhaavavyakti.
बहुत सुन्दर कृति।
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