Thursday, July 15, 2010

ध्यान किनारे पर रख कर



 
 
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सुबह सुबह चिड़िया का स्वर
चिर आनंद प्रसाद मुखर
हर कोलाहल पार करो
शुद्ध शांति को अपना कर


पग-पग, छुप-छुप मिले भंवर
रुक मत जाना तुम फंस कर
हर एक गाँठ खुल जायेगी 
ध्यान किनारे पर रख कर 


अनुभव किताबों की तरह
शेल्फ में सजा कर
अक्सर
हम भूल जाते हैं 
उसकी इबारत

उसी तरह
धड़कता है दिल
पढ़ कर
पहली बारिश की
हवा का ख़त

अब जब 
हम जानते हैं
कि हमेशा नहीं रहता सावन
फिर भी
बेसुध कर देता है 
सोंधी माटी का बदन 
 
शायद सुन्दरता तब है
जब हमारा होना अनायास रहे 
पर स्थिरता के लिए जरूरी है
होने के पीछे सुमिरन का अभ्यास रहे 

अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ५ बज कर १५ मिनट
गुरुवार, १५ जुलाई २०१०

3 comments:

vandana gupta said...

शायद सुन्दरता तब है
जब हमारा होना अनायास रहे
पर स्थिरता के लिए जरूरी है
होने के पीछे सुमिरन का अभ्यास रहे

एकदम सही बात कह दी………………बिना अभ्यास के तो कुछ भी याद नही रहता फिर ये तो अध्यात्म है अपने को जानने की प्रक्रिया है स्वंय से मिलने का सहज मार्ग है मगर इसके लिए भी तो अभ्यास जरूरी है ……॥

प्रवीण पाण्डेय said...

सुबह सुबह चिड़ियों का कलरव मंत्रमुग्ध कर जाता है,
जीवन के चिन्तन पथ पर आ कौन अरुणिमा गाता है।

सूर्यकान्त गुप्ता said...

सुंदर रचना।

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