Sunday, July 11, 2010

वहां खुशबू का एक खज़ाना रहे




ज़िन्दगी का सफ़र सुहाना रहे
 मिलने-जुलने का एक बहाना रहे
 
रिश्ता इतना तो रह सके कायम
किसी के घर में आना-जाना रहे 
 
छेड़ता है  शगल हवाओं का 
मेरे भीतर कोई दीवाना रहे
 
आप चुपचाप लौट आये पर 
वहां खुशबू का एक खज़ाना रहे
 
रात भर इस पे लड़े वो दोनों 
किस दिशा की तरफ सिरहाना रहे

शहर में जा के ये भी जान लिया
शहर से दूर क्यूं सयाना रहे
 
रंग बदला है दिल की बातों का
तेज़ रफ़्तार अब ज़माना रहे
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ६ बज कर ४५ मिनट
रविवार, जुलाई ११, २०१०








3 comments:

Anamikaghatak said...

zamana chahe kaisa bhi ho aap kavita aise hi likhte rahe..........nice poem.........badhai

शोभा said...

रंग बदला है दिल की बातों का
तेज़ रफ़्तार अब ज़माना रहे
अति सुन्दर।

प्रवीण पाण्डेय said...

सुन्दर ।

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