ज़िन्दगी का सफ़र सुहाना रहे
मिलने-जुलने का एक बहाना रहे
रिश्ता इतना तो रह सके कायम
किसी के घर में आना-जाना रहे
छेड़ता है शगल हवाओं का
मेरे भीतर कोई दीवाना रहे
आप चुपचाप लौट आये पर
वहां खुशबू का एक खज़ाना रहे
रात भर इस पे लड़े वो दोनों
किस दिशा की तरफ सिरहाना रहे
शहर में जा के ये भी जान लिया
शहर से दूर क्यूं सयाना रहे
रंग बदला है दिल की बातों का
तेज़ रफ़्तार अब ज़माना रहे
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ६ बज कर ४५ मिनट
रविवार, जुलाई ११, २०१०
3 comments:
zamana chahe kaisa bhi ho aap kavita aise hi likhte rahe..........nice poem.........badhai
रंग बदला है दिल की बातों का
तेज़ रफ़्तार अब ज़माना रहे
अति सुन्दर।
सुन्दर ।
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