Thursday, July 8, 2010

दर्पण में तूफ़ान मिलेगा



कहाँ खबर थी शहर में अपने
हर कोई सुनसान मिलेगा
 
 परियों के प्यारे किस्सों से
हर कोई  अनजान मिलेगा
 
धूप पेड से यूँ पूछेगी 
कहो कहाँ इंसान मिलेगा
 
प्यासों के संग छोड़ के पानी 
और बड़ा सामान मिलेगा
 
भूल चलेगा अपना चेहरा
दर्पण में तूफ़ान मिलेगा
 
बड़े बड़े घर, अन्दर खाली
रास्ते पर दरबान मिलेगा
 
सारे बंधन छोड़ चलेंगे 
जब उसका फरमान मिलेगा
 
चलते चलते थक कर सोचा
अब वो खुद ही आन मिलेगा

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ६ बजे
गुरुवार, जुलाई ८, २०१० 
 


4 comments:

माधव( Madhav) said...

nice

प्रवीण पाण्डेय said...
This comment has been removed by the author.
प्रवीण पाण्डेय said...

लोकतन्त्र में ना जाने कब
अधिकारों का दान मिलेगा

सूर्यकान्त गुप्ता said...

सुन्दर प्रस्तुति।

सुंदर मौन की गाथा

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