कहाँ खबर थी शहर में अपने
हर कोई सुनसान मिलेगा
परियों के प्यारे किस्सों से
हर कोई अनजान मिलेगा
धूप पेड से यूँ पूछेगी
कहो कहाँ इंसान मिलेगा
प्यासों के संग छोड़ के पानी
और बड़ा सामान मिलेगा
भूल चलेगा अपना चेहरा
दर्पण में तूफ़ान मिलेगा
बड़े बड़े घर, अन्दर खाली
रास्ते पर दरबान मिलेगा
सारे बंधन छोड़ चलेंगे
जब उसका फरमान मिलेगा
चलते चलते थक कर सोचा
अब वो खुद ही आन मिलेगा
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ६ बजे
गुरुवार, जुलाई ८, २०१०
4 comments:
nice
लोकतन्त्र में ना जाने कब
अधिकारों का दान मिलेगा
सुन्दर प्रस्तुति।
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