Friday, July 9, 2010

हर बंधन भी सुन्दर है


जाना पहचाना सा घर है
फिर भी कहीं नया डर है 
सुने कोई-कोई लेकिन
सबमें शाश्वत का स्वर है

कितनी सारी बातें हैं पर
भीतर मौन उजागर है
नदी भले छोटी सी हो पर
उसमें भी एक सागर है
लेकर भी हम रोते हैं
देकर मगन दिवाकर है 

 मुक्त हुआ ही देख सके 
हर बंधन भी सुन्दर है
तेरा- मेरा छूट गया तो 
सारा जग अपना घर है
अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका
शुक्रवार, ९ जुलाई 2010
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जोधपुर निवासी आदरणीय शायर शीन कॉफ़ निजाम साहब की सलाह पर दो शेर संशोधित किये
'जाना पहचाना सा दर है' अब हो गया 'जाना पहचाना सा घर है'
और
'इतनी सारी बातें हैं पर' अब हो गया 'कितनी सारी बातें हैं पर'
मोहब्बत के साथ
बाँट ली अन्दर की बात
अशोक व्यास
रविवार, ११ जुलाई 2010

2 comments:

संगीता पुरी said...

सुंदर अभिव्‍यक्ति !!

प्रवीण पाण्डेय said...

तेरा- मेरा छूट गया तो
सारा जग अपना घर है

सुन्दर, शाश्वत अभिव्यक्ति ।

सुंदर मौन की गाथा

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