वो सब
जो कर लेना चाहिए था अब तक
और नहीं कर पाए हो
इसका शोक ना मनाओ
देखो
अब क्या कर सकते हो
सोचना छोड़ कर, करने में जुट जाओ
२
परिवर्तन कल से नहीं
आज से
अभी से
इस क्षण से
कह कर
मुड गया वो
चलने लगा
चलते चलते
दूर निकल गया
आँखों से ओझल हो गया जब
तब मालूम हुआ
परिवर्तन एक क्षण से शुरू भले ही हो
यह एक निरंतर प्रक्रिया है
जिसमें ये याद रखना जरूरी है
कि हम जीवित हैं
और जीवित होने का अर्थ गति है
और गति के लिए जड़ता को तोडना होता है
जड़ता के टूटने से परिवर्तन की कोपलें निकलती हैं
जीवन वृक्ष रचनात्मक परिवर्तन की शाखाओं के फैलने का नाम है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ६ बज कर ३० मिनट
मंगलवार, ६ मई २०१०
1 comment:
सशक्त कृति । जीवन को क्षणवत व क्षण को जीवनी बना कर जीने को परिभाषित कर दिया ।
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