Tuesday, July 6, 2010

जीवित होने का अर्थ गति है








वो सब 
जो कर लेना चाहिए था अब तक
और नहीं कर पाए हो
इसका शोक ना मनाओ
देखो
अब क्या कर सकते हो
सोचना छोड़ कर, करने में जुट जाओ 
 
परिवर्तन कल से नहीं
आज से
अभी से
इस क्षण से
कह कर
मुड गया वो
चलने लगा 
चलते चलते
दूर निकल गया
आँखों से ओझल हो गया जब 
तब मालूम हुआ 
परिवर्तन एक क्षण से शुरू भले ही हो
यह एक निरंतर प्रक्रिया है 
जिसमें ये याद रखना जरूरी है
कि हम जीवित हैं 
और जीवित होने का अर्थ गति है
और गति के लिए जड़ता को तोडना होता है
जड़ता के टूटने से परिवर्तन की कोपलें निकलती हैं
जीवन वृक्ष रचनात्मक परिवर्तन की शाखाओं के फैलने का नाम है
 
अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ६ बज कर ३० मिनट
मंगलवार, ६ मई २०१०

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

सशक्त कृति । जीवन को क्षणवत व क्षण को जीवनी बना कर जीने को परिभाषित कर दिया ।

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