Monday, July 5, 2010

आसमान तक जाने के लिए

(जल पर है आलोक मछुरिया -          चित्र- अशोक व्यास )


सहसा उसके आने से
शुरू हुई सभा की कार्यवाही
उठ गए उनींदे लोग
उत्साह में भर कर
सुनने लगे उसकी बातें
जिनमें उजियारा मचलता था 

"गणित से नहीं चलता मन 
पर मन का भी एक गणित है
जिसे जान कर भी मान नहीं पाते हम
 
देखो कोई कैसे पेड़ पर लगे झूले की गति तेज करता है
समझो वो जहां है, उसी बिंदु से गति का संचार करता है
 
अपने हिस्से की पीड़ा अगर पूरी तरह हटा दोगे 
तो जीवन के वैभव को भी अनजाने में घटा दोगे
 
आसमान तक जाने के लिए 
जोड़ के साथ ये भी जानो कि क्या घटाना है
और ठीक से देखो, तुम वो हो
जिसे नापने के लिए छोटा पड़ जाता हर पैमाना है"

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ७ बज आकर ४५ मिनट
सोमवार, ५ जुलाई २०१०

3 comments:

Sunil Kumar said...

और ठीक से देखो, तुम वो हो
जिसे नापने के लिए छोटा पड़ जाता हर पैमाना है"

सुंदर अभिव्यक्ति ,शुभकामनायें

संगीता पुरी said...

अच्‍छी प्रस्‍तुति .. बहुत सुंदर !!

प्रवीण पाण्डेय said...

दर्शन बताती कविता ।

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