1
कल जहाँ पर्वत था
आज वहां सागर है
और सागर में जल नहीं तेल है
ये सब क्या कुदरत का खेल है?
२
अब ना ऊँचाई का बुलावा
ना लहरों का संगीत
अब ना जाने किस कोने में
सिसक रही कोमल प्रीत
मुक्ति के दिखावे में भी
जैसे कोई जेल है
ये सब क्या कुदरत का खेल है ?
३
पेड़ नहीं बसते कहीं और जाकर
मनुष्य छोड़ सकता है अपना कर
कोई व्यथा सुनाता है गा गाकर
कोई व्यथा पार कर लेता गाकर
शक्ति देती है शुद्ध दृष्टि
दुर्बल बनाता मिलावट का मेल
संकेत देकर राह सुझाता
कुदरत का अनूठा खेल
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ६:००बजे
शुक्रिवार, जून १८, २०१०
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